उपेक्षा के दर्द से उपजी बगावत न बन जाये नासूर

 त्वरित टिप्पणी

सत्यनारायण शर्मा



अनुशासन के लिए पहचान रखने वाली भाजपा में भी अब 'कलह' खलकर सामने आ गई है।नगर के 23 वार्डो में कई के हालात बदतर है।अधिकतर स्थानों पर निर्दलीयों का दर्द 'उपेक्षा'है।किसी अन्य को टिकिट देकर उन्हें उनके ही घर मे 'बेगाना' बना दिया गया है।नगर सरकार के इस चुनाव में वार्ड को फतेह करने के लिए  'कार्यकर्ता' पता नही कितने वर्षों से मेहनत कर रहा होता है।मगर बड़े चुनावो की तरह अबकी बार नगर सरकार के चुनाव में भी 'पैराशूट' व 'प्रभावी'प्रत्याशियों ने माहौल बिगाड़ दिया।छोटे कार्यकर्ताओ को दरकिनार कर बड़े पदाधिकारियो को जब 'मेंडेट' से नवाजा गया तो छोटे कार्यकर्ता की कराह से कई निर्दलीयों का जन्म हो गया।जिसके नतीजे क्या होंगे यह लगभग सभी को पता है।प्रश्न यह उठता है कि आखिर पदों पर आसीन नेताओ की ऐसी क्या मजबूरी थी कि वे लीडर बनकर नगर सरकार बनाने की राह आसान करने की बजाय खुद ही मैदान में कूदकर राह का रोड़ा बन गए। पदों पर आसीन बड़े पदाधिकारियो को 'पिता' की भूमिका अदा करते हुवे अपने कार्यकर्ताओं को मौका देना था।अगर वे खुद मैदान में नही होते तो नगर के अन्य वार्डो में भी माहौल बना सकते थे।मगर अब वे खुद को 'बचाने' तक ही सीमित हो गए है। खैर जो भी चुनाव के बाद सबको पता चल जाएगा कि किसका वजूद कितना है। एक अहम सवाल यह भी है कि मेंडेट वाले प्रत्याशियों के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले कार्यकर्ताओ को आज नही तो कल अनुशासन का डंडा जरूर दिखाया जाएगा?मगर कार्यवाही का बिगुल उनके खिलाफ भी बजना चाहिए जो बगावत करने वालो का हक छीनकर भी सफल नही हो सकेंगे।

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