दस महाविद्या साधना से नौ ग्रहों की शांति

ज्योतिष रत्न पं. दिनेश शास्त्री

 मध्यप्रदेश संगठन मंत्री

 राष्ट्रीय ज्योतिष एवं रुद्राक्ष अनुसंधान संस्थान 

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      जिसकी उपासना से त्रिदेव विश्व का निर्माण, पालन और संहार करने में समर्थ होते हैं, वही शक्ति दस महाविद्या के रूप में विद्यमान है। देवी के 10 रूपों का वर्णन षोडश तंत्र में किया गया है। शक्ति के यह रूप संसार के सृजन का सार है। इन शक्तियों की  उपासना मनोकामना पूर्ति और  सिद्धि प्राप्त करने के लिए की जाती है।

देवी के दस रूप :- काली, तारा, षोड़शी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, त्रिपुर भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी ओर कमला। इनके मंत्रों का सटीक उच्चारण अत्यावश्यक है। ये दस महाविद्याएँ भक्तों का भय निवारण करती हैं। जो साधक इन विद्याओं की उपासना करता है, उसे धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष सब की प्राप्ति हो जाती है। इन  महाविद्याओं की उपासना ग्रहों की शुभता की अभिवृद्धि के उद्देश्य से भी की जाती है।


 

1. काली :- दस महाविद्याओं में काली प्रथम है। देवीभागवत के अनुसार महाकाली ही मुख्य है। उन्हीं के उग्र और सोम्य दो रूपों से अनेक रूप धारण करने वाली दस महाविद्याएँ हैं। कलयुग में कल्पवृक्ष के समान शीघ्र फल देने वाली और साधक की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण करने वाली है। शनि ग्रह की अनुकूलता के लिए काली की उपासना की जाती है।
2. तारा :- भगवती काली को नीलरूपा और सर्वदा मोक्ष देने वाली तथा तारने वाली होने के कारण तारा कहा जाता है। सबसे पहले महर्षि वशिष्ठ ने माँ तारा की आराधना की थी। आर्थिक उन्नति और अन्य बाधाओं के निवारण हेतु तारा महाविद्या का स्थान महत्वपूर्ण है। विपत्तिनाश, वाक्शक्ति और मोक्ष प्राप्ति के लिए तारा की उपासना की जाती है। ग्रहों में गुरु ग्रह की अनुकूलता के लिए तारा की उपासना की जाती है।
3.षोडशी :- षोडशी माहेश्वरी शक्ति की सबसे मनोहर श्रीविग्रह वाली सिद्ध देवी है। षोडशी को श्रीविधा भी माना गया है। इनके ललिता, राज राजेश्वरी, महा त्रिपुरसुंदरी, बलपंचदशी आदि अनेक नाम हैं।  इनकी उपासना श्रीयंत्र के रूप में की जाती है। ये अपने उपासक को भक्ति और मुक्ति दोनों प्रदान करती है। षोडशी उपासना में दीक्षा आवश्यक है। बुध ग्रह की अनुकूलता के लिए भी इनकी उपासना की जाती है।
4. भुवनेश्वरी :- महाविद्याओं में भुवनेश्वरी महाविद्या को आद्यशक्ति अर्थात मूल प्रकृति कहा गया है। इसलिए भक्तों को अभय और समस्त सिद्धियां प्रदान करना इनका स्वाभाविक गुण है। भगवती भुवनेश्वरी की उपासना पुत्र प्राप्ति के लिए विशेष फलप्रद है। चंद्रमा ग्रह की अनुकूलता के लिए भी भुवनेश्वरी महाविद्या की उपासना की जाती है।
5. छिन्नमस्ता :- परिवर्तनशील जगत का अधिपति कबन्ध है ओर उसकी शक्ति छिन्नमस्ता है। इनका स्वरूप ब्रह्मांड में सृजन ओर मृत्यु के सत्य को दर्शाता है। ऐसा विधान है कि चतुर्थ संध्यकाल में छिन्नमस्ता की उपासना से साधक को सरस्वती सिद्ध हो जाती है। राहु ग्रह की अनुकूलता के लिए छिन्नमस्ता की उपासना की जाती है।
6. त्रिपुर भैरवी :- विश्व के अधिष्ठाता दक्षिणमूर्ति कालभैरव है। उनकी शक्ति ही त्रिपुर भैरवी है। इनकी साधना की मुख्य विशेषता ये भी है की व्यक्ति के सौंदर्य में निखार आने लगता है और वह अत्यंत सुंदर दिखने लगता है। इनका रंग लाल है। ये लाल रंग के वस्त्र पहनती हैं। त्रिपुर भैरवी का मुख्य लाभ घोर कर्म में होता है। जन्मपत्रिका में लग्न की शुभता के लिए इनकी उपासना की जाती है।
7. धूमावती :- धूमावती महाशक्ति अकेली है तथा स्वयं नियंत्रिका है। इनका कोई स्वामी नहीं है। ये विधवा स्वरूप में पूजी जाती हैं। धूमावती उपासना विपत्ति नाश, रोग निवारण, युद्ध में विजय आदि के लिए की जाती है। यह लक्ष्मी की ज्येष्ठा हैं, अतःज्येष्ठा नक्षत्र में उत्पन्न व्यक्ति जीवनभर दुख भोगता है। उन्हें धूमावती साधना करनी चाहिए। केतु ग्रह की अनुकूलता के लिए धूमावती की उपासना की जाती है।
8. बगलामुखी :- यह साधना शत्रु बाधा को समाप्त करने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण साधना है। इनकी उपासना भोग ओर मोक्ष दोनों की सिद्धि के लिए की जाती है। इनकी उपासना में हरिद्रा माला, पीत पुष्प ओर पीतवस्त्र का विधान है। मंगल ग्रह की अनुकूलता के लिए भी इनकी उपासना लाभप्रद है।
9. मातंगी :- मातंग शिव का नाम ओर इनकी शक्ति मातंगी है। ये असुरों को मोहित करने वाली ओर भक्तों को अभीष्ट फल देने वाली है। गृहस्थ जीवन को सुखमय बनाने के लिए मातंगी की साधना श्रेयस्कर है। सूर्य ग्रह की शुभता में भी इनकी उपासना की जाती है।
10. कमला :- जिसके घर में दरिद्रता ने कब्जा कर लिया हो और घर में सुख-शांति नहीं हो, आय के स्रोत नहीं हो, उनके लिए यह साधना सौभाग्य का द्वार खोल देती है। शुक्र ग्रह की अनुकूलता के लिए इनकी उपासना की जाती है।

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