संग्रहालय से आगर को मिल सकती है नई पहचान :नरवल व बीजानगरी में बिखरे पडे हुए पुरातन अवशेष
आगर-मालवा, निप्र। संग्रहालय एक ऐसा संस्थान है। जहां मानव और पर्यावरण की विरासतों के संरक्षण कार्य कर संग्रह, शोध, प्रचार और प्रदर्शन का कार्य करता है। संग्रहालय का उपयोग शिक्षा, अध्ययन और मनोरंजन के लिए भी होता है। आगर जिले में अपार पुरातत्व संपदा यत्र-तत्र बिखरी पडी है। इन प्राचीन अवशेषों को सहजने के लिए आगर में भी संग्रहालय खोला जाना चाहिए। ताकि यहां पहुंचने वाले लोग आगर और विशेषताओं से रूबरू हो सके।
आगर जिला सांस्कृतिक संपदा के लिहाज से बेहद धनी स्थान रहा है। ग्राम बीजानगरी और नरवल यहां-वहां अनेक प्रतिमाएं क्षत-विक्षत अवस्था मेेंं बिखरी हुई है। सूत्रों तो यहां तक बताते है कि वर्षों पहले यहां मिली कई प्रतिमाएं यहां से अन्यत्र ले जाई गई है। बाबा बैजनाथ महादेव प्रांगण में वराह प्रतिमा इसका जीता जगाता उदाहरण है। पुराने शिवलिंग भी यहां स्थापित है। जिला मुख्यालय से 5 किमी दूर स्थित ग्राम नरवल सांस्कृतिक स्थल है। यहां अध्ययन एवं खोज करने से कला संपदा के कई तथ्य उजागर हो सकते है। प्रख्यात पुरातत्ववैता डॉ। विष्णु श्रीधर वाकणकर और पुरातत्वविद डॉ। श्यामसुंदर निगम ने भी नरवल के पुरातत्व को देखा था। नरवल एक ऐसा स्थल है जहां प्राचीन इतिहास की कला सामग्री आज भी दबी पडी है। जिला मुख्यालय से 26 किमी दूर स्थित बीजानगरी भी पुरातत्व की दृष्टि से समृद्ध है। हरसिद्धि माता मंदिर के अंदर व बाहर चबूतरों व खेतों में बिखरे भग्र मुर्तियों के कलाविष्ट इसके प्रत्यक्ष प्रमाण है। सुसनेर-नलखेडा-सोयत व अन्य स्थानों पर भी कई ऐतिहासिक वस्तुएं प्राप्त होने की बातें बुजुर्गो द्वारा कही जाती है। अब देखना दिलचस्प यह होगा कि जिम्मेदार अधिकारी व जनप्रतिनिधि कितनी तत्परता से जिले को नई पहचान दिलाने की दिशा में संग्रहालय खुलवाने का बीडा उठाते है।