आज से शुरू होगा शक्ति की आराधना का पर्व:बगलामुखी माता मंदिर रहेगा बंद

 

आगर मालवा (टीम शब्द संचार)। देवी की आराधना का पर्व 13 अप्रेल आज से शुरू होगा।नवरात्रि पूरे 9 दिन की रहेगी। महाष्टमी 20 अप्रेल व रामनवमी 21 अप्रेल को है। माता के भक्त माँ को रिझाने के लिए 9 दिनों तक जप,तप व व्रत में लीन रहेंगे। कई भक्त 9 दिनो तक बाल नही बनवाते है तो कई श्रद्धालु 9 दिनों तक नगें पैर रहते है। कई श्रद्धालु तो 9 दिन तक निराहार रहकर मौन व्रत तक रखते है।लालमाटी आगर सहित जिले में कई पुरातन देवी मंदिर है। इस बार भी कोरोना के बढ़ते प्रकोप के कारण विश्व प्रसिद्ध बगलामुखी मंदिर श्रद्धालुओं के लिए बंद रहेगा।  देवी मंदिरों की महत्वता को जानने के पढि़ए शब्द संचार की विशेष खबर।


भगवान कृष्ण की सलाह पर महाभारत विजय 
हेतु पांडवो ने की थी माँ बगलामुखी की आराधना


नलखेड़ा- मां बगलामुखी मंदिर विश्वभर में प्रख्यात है। प्राचीन तंत्र ग्रंथों में 10 महाविद्याओं का उल्लेख मिलता है। उनमें से बगलामुखी एक है। मां भगवती बगलामुखी का महत्व समस्त देवियों में सबसे विशिष्ट है। विश्व में इनके 3 ही महत्वपूर्ण प्राचीन मंदिर है, जिनमें से एक नलखेड़ा में स्थित है। जहां मां बगलामुखी विराजित होती है, वह नगर प्राकृतिक आपदाओं से मुक्त होता है। यहां के बारे में मान्यता है कि मंदिर में स्थित प्रतिमा महाभारत कालीन है और राजा युधिष्ठिर द्वारा भगवान श्रीकृष्ण के कहने पर कौरवों पर विजय पाने के लिए मां की आराधना की थी। बगलामुखी मंदिर में वैसे तो नित्य ही श्रद्धालुओं की आवाजाही बनी रहती है, लेकिन चैत्रीय और शारदीय नवरात्र के दौरान यहां दूरदराज से श्रद्धालु पहुंचते हैं। प्राचीन सिद्ध शक्तिपीठ मां बगलामुखी मंदिर को पाण्डवों की साधना स्थली के रूप में जाना जाता है। पूरी दुनिया में मां बगलामुखी के द्वापरयुगीन तीन सिद्धपीठ है, जिसमें नलखेड़ा सिद्धपीठ, उपपीठ नेपाल तथा तीसरा बिहार में है। मध्यप्रदेश के ही दतिया में भी मां बगलामुखी का मंदिर है। कौरवों पर विजय पाने के लिए पाण्डवों ने भगवान कृष्ण के कहने पर यहां बगलामुखी की आराधना की थी और युद्ध में कौरवों पर विजय पाई थी। काली पुराण के अनुसार मां बगलामुखी की स्थापना भीम के पुत्र बर्बरिक ने की थी। बर्बरिक स्वयं ही महातांत्रिक एवं सिद्ध थे। द्वापरयुगीन यह मंदिर अत्यंत चमत्कारिक है। मंदिर में माता बगलामुखी के अतिरिक्त मां लक्ष्मी, कृष्ण, हनुमान, भैरव तथा सरस्वती भी विराजित है। मान्यता है कि प्रतिमा स्वयंभू है। इस मंदिर में बगलामुखी मनोकामना पूरी करने व किसी भी क्षेत्र में विजय प्राप्त करने के लिए यज्ञ, हवन व पूजा पाठ कराते हैं। बगलामुखी माता मूलत: तंत्र की देवी है। इसलिए यहां तांत्रिक अनुष्ठानों का महत्व अधिक है। नवरात्रि में यहां भक्तों का हुजूम लगा रहता है। बगलामुखी का मंत्र 36 अक्षर का होता है। शत्रु विनाश, मोहन उच्चाटन और वशीकरण के लिए बगलामुखी देवी की आराधना की जाती है। भगवती को पीला रंग विशेष प्रिय है। इसी कारण मां बगलामुखी पीताम्बर धारण करती है।

बीजानगरी में विराजित है माता हरसिद्धि


बीजानगरी- बीजानगरी के राजा विजयसिंह के नाम पर इस गांव का नामांकरण किया गया था। यहां मां हरसिद्धि विराजित है। राजा प्रतिदिन घोड़े पर सवार होकर उज्जैन स्थित हरसिद्धि मंदिर में दर्शन करने जाया करते थे। वे बीजानगर से चलकर तनोडिय़ा पहुंचते थे और यहां से घोड़ा बदलकर उज्जैन जाते थे। बताया जाता है कि मां ने राजा के ख्वाब में आकर कहा कि अब उज्जैन दर्शन के लिए नहीं आना पड़ेगा। मैं स्वयं बीजानगर में प्रकट हो रही हूं। राजा ने सुबह यह बात अपने प्रजाजनों को बताई और जंगल में जाकर देखा तो मां स्वयं पहाड़ों के मध्य से गांव में प्रकट हो चुकी थी। इस मंदिर में भी बड़ौद सहित आसपास के क्षेत्र से बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। पं. रामचंद्र व्यास के अनुसार नवरात्रि पर्व के दौरान मां के दरबार में दूरदराज से भी श्रद्धालु आते हैं। मां हरसिद्धि दिन में तीन बार रुप बदलती है। नवरात्रि में यहां भी खासी चहल पहल रहती है। माँ के मंदिर में अखंड ज्योति प्रज्जवलित हो रही है।

पचेटी वाली महारानी के दरबार मे पूरी होती है भक्तो की मुरादे


चौमा,। आगर से सारंगपुर जाने वाले मार्ग से पचेटी डेम तक रास्ता जाता है। यहां विराजित है पचेटी वाली महारानी। यह मंदिर भी खासा प्रसिद्ध है।मंदिर का भव्य निर्माण लगभग 2 करोड़ की राशि से भक्तों द्वारा करवाया जा रहा है। पचेटी वाली माताजी के मंदिर में वचन भी दिया जाता है। यहां दूर दूर से श्रद्धालु मन्नते लेकर पहुंचते हैं। मन्नत पूरे होने पर भी भक्त मां के दरबार में शीश नवाने आते हैं। पचेटी वाली बाड़ी माता के नाम से संपूर्ण क्षेत्र में यह मंदिर प्रसिद्धि रखता है। 

संतान प्राप्ति का वरदान देती है नांदना की लालमाता 

सुसनेर,। सुसनेर से 2 किलोमीटर की दूर पर ग्राम नादंना में एक विशाल वटवृक्ष के नीचे लालमाता विराजमान है। लालमाता के इस मंदिर से कई चमत्कारीक घटनाएं भी जूडी हुई है। कहां जाता है सच्चे मन से माता के दर्शन करने वाले श्रृद्धालु को यहां से संतान प्राप्ती कर वरदान मिलता है।  मातारानी आने वाले श्रृद्धालु की हर मनोकामना को पूरी करती है। नादंना ग्राम के मध्य में स्थित मंदिर में  नवरात्रि में भक्त मां के दर्शन करने दूर दूर  आते है। अतिप्राचीन मंदिर में वर्षो से अंखड ज्योति जल रही है। इसकी स्थापना के बारे में ग्रामवासीयो को भी पता नही है। ग्राम के गौपाल बैरागी के अनुसार 100 वर्ष पूर्व सुसनेर निवासी चांदमल जैन के पिता ने पुत्र प्राप्ती हेतु मन्नत मांगी थी। जैन ने संतान प्राप्ती के बाद मंदिर में नगाडा भी भेंट किया था। साथ ही ग्राम के एक युवक हरिसिंह की पत्नी को डाक्टरो ने संतान नही होने की बात कही थी। लेकिन मातारानी के आर्शीवाद से संतान की प्राप्ती हुई। उसके बाद गैलाना के रामलाल को 60 साल की उम्र में संतान की प्राप्ती हुई थी। तब से लेकर आज तक इस वरदान की जैसे- जैसे चर्चा फैलती गई मंदिर में श्रृद्धालुओ की संख्या बढती गई। आज दूर- दूर से श्रृद्धालु संतान प्राप्ती हेतु मां के दरबार में  पहुंच रहे है। वैसे तो इस मंदिर से जूडी कई चमत्कारित व प्राचीन कथाएं प्रचलित है। जो मंदिर के प्रति श्रृद्धालुओ की आस्था बढाती है। कहते है कि सन् 1992 में इस गांव में मंदिर पर एक भंडारे का आयोजन हो रहा था। भोजन प्रसादी ग्रहण करने के लिए हजारो की संख्या में श्रृद्धालु पहुुुंचे थे। उस समय तेल खत्म हो गया था। एक श्रृद्धाुल ने  हैंडपम्प का पानी लेकर कढाई में डाला तो उसमें से देसी घी की सुगंध आने लगी। उसी घी से भोजन बनाकर के भंडारे में आए सभी श्रृद्धालुओ को भोजन कराया गया था। भोजन ग्रहण करने वाले श्रृद्धालु खत्म हो गए थे लेकिन कढाई में से घी खत्म नही हुआ। 

दिन में तीन रूप बदलती है भवानी माता

पिपलोनकलां- तनोडिय़ा से 9 किमी दूर स्थित भवानी माता का मंदिर भी अत्यंत प्राचीन है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान भक्त मंडली द्वारा छोटे मोटे निर्माण कार्य करवाये गये है। भक्त मंडल से जुड़े डॉ. मोहनलाल मकवाना ने बताया कि गांव में आने वाले भाट के अनुसार भवानी माता मंदिर के समीप स्थित महादेव मंदिर करीब एक हजार वर्ष पुराना है। उनकी पुस्तकों में इस बात का उल्लेख है। भवानी माता का मंदिर कितना पुराना है इस बात का कोई प्रमाण तो मौजूद नहीं है किंतु शंकर मंदिर की प्राचीनता से ही मां भगवती का मंदिर भी पुरातन होने के प्रमाण मिलते हैं। मंदिर में 9 दिनों तक विभिन्न आयोजन होंगे। भक्तो द्वारा जन सहयोग से मंदिर में निर्माण करवाये गए है।

पहाड़ो में लगता है माता तुलजा भवानी का दरबार


आगर-मालवा- सारंगपुर रोड स्थित मां तुलजा भवानी का मंदिर अत्यंत प्राचीन है। इस मंदिर को गुफा बर्डा के नाम से भी पहचाना जाता है। आम बोलचाल की भाषा में बर्डा का तात्पर्य पहाड़ी से है। यहां ऊंची पहाड़ी पर गुफा बनी है और इसी में मां तुलजा भवानी विराजित है। पुराने लोग बताते हैं कि मंदिर के पीछे एक गुफा बनी हुई है और इस गुफा मार्ग के रास्ते उज्जैन के राजा मां तुलजा भवानी के दर्शन करने आया करते थे। सुरक्षा कारणों के चलते उक्त गुफा को बंद कर दिया गया है। नवरात्रि पर्व के दौरान सुबह 4 बजे से ही श्रद्धालु यहां पहुंचने लगते हैं। यहा नगर पालिका द्वारा घट स्थापना की जाती है।

आस्था का केंद्र माँ चौसठ का दरबार


सोयतकलां- चौसठ माता का मंदिर प्राचीन होकर आस्था का केंद्र है। यह नगर का प्रमुख देवी मंदिर है। नगर के अन्य देवी मंदिर हिंगलाज माता मंदिर, शीतल माता व ग्राम बराई में वराही माता मंदिरों में भी 9 दिनों तक विभिन्न आयोजन होंगे। मंदिर काफी प्राचीन बताया जाता है।

बड़ के पेड़ से प्रकट हुई थी लालमाता

तनोडिय़ा,। प्रसिद्ध लालबाई माता का मंदिर नगर के पश्चिमी छोर पर स्थित है। माता की प्रतिमा 600 वर्ष से अधिक पुरानी है। बताया जाता है कि माता जी वर्तमान मंदिर के पीछे स्थित एक बरगद के वृक्ष से प्रकट हुई थी। यहाँ पर चार देवियाँ लालमाता, वाँकवेरई माँ, हरसिद्धि माँ तथा खेडियाल माता जी का मंदिर है। ये देवियाँ अपने भक्तों की हर संकट से रक्षा करती है। लाल माता जी के बारे में अनेक कथाएं प्रचलित है। जो बुजुर्गों के द्वारा कही जाती है। लाल माता के मंदिर से थोडा आगे थडोदा ग्राम के निकट ही फूलबाई माता का मंदिर भी स्थित है। इसके बारे में कहा जाता है कि लालबाई और फूलबाई दोनो बहने है।लालमाता मंदिर का जीर्णोद्धार भक्तो द्वारा करवाया गया है।पूरे गर्भगृह में कांच की आकर्षक नक्काशी देखते ही बनती है।

प्राचीन है सुसनेर का  शीतला माता मंदिर

सुसनेर, । शिव बाग स्थित शीतला माता मंदिर में नवयुगल विवाह से पहले पूजा करते है इसके बाद ही उनके वैवाहिक जीवन की शुरूआत होती है।  नवरात्रि में यह मंदिर श्रृद्धालुओ की आस्था का कैन्द्र रहता है।  मंदिर में  अखण्ड ज्योत भी जल रही है। जानकारो तथा बुजुर्गो के अनुसार यह मंदिर सुसनेर नगर में हजारो वर्षो से स्थापित है। इस प्राचीन शीतला माता मंदिर की स्थापना अनादीकाल में राजा महाराजाओ द्वार की गई। शीतला सप्तमी के दिन भी यहा बड़ी संख्या में महिलाएं पूजन करने पहुँचती है।

स्वयं भू है मां चौसठ योगिनी 

सुसनेर, के मेला ग्राउण्ड रोड पर  चौसठ योगिनी माता मंदिर में मा की प्रतिमा स्वयं भू है। यह प्रतिमा धरती से प्रकट हुई थी। उसके बाद भक्तो ने यहां मंदिर का निर्माण कर दिया। आज यह मंदिर शक्ति की भक्ति का सबसे बडा केन्द्र बना हुआ है। मंदिर के पुजारी पण्डित पुरूषोत्तम बैरागी के अनुसार मां चौसट योगिनी का यह मंदिर अतिप्राचीन है जो नगर की स्थापना से पहले का है। तीन पीढीयां उनका परिवार माता की पूजा अर्चना कर रहा है। मंदिर में विराजित प्रतिमा को कही से लाया नही गया है। बल्की यहां मातारानी स्वयं धरती में से प्रकट हुई थी। मंदिर नगर की स्थापना से पहले का है।


शकरकुईया का सिंह भवानी माता मंदिर

नगर के मध्य छावनी क्षेत्र में तालाब के किनारे शकरकुईया नामक दार्शनिक स्थल के परिसर में विराजित है मां सिंह भवानी पंडित राकेश राणा और कैसर बाई बताते हैं कि हमारी 11 पीढिय़ां बीत चुकी है हम तब से इस मंदिर मैं माता रानी की सेवा कर रहे हैं यह मंदिर कितना पुराना है यह बता पाना हमारे लिए मुश्किल है इनकी कृपा से हमारी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती है और निरंतर भक्तों की आवाजाही लगी रहती है यह मंदिर अशासकीय है इसलिए यहां विकास कार्य रुके हुए हैं लेकिन माता की कृपा अनवरत बनी हुई है । मंदिर के निकट भगवान शिव, हनुमान जी, शनि देव एवं मां चामुंडा के मंदिर भी स्थित है यह परिसर अति रमणीय है। 


आगर नगर के मध्य में विराजित है माँ कामाख्या

पुराने आगर के ह्रदय स्थल गोपाल मंदिर के निकट स्थित अति प्राचीन कामाख्या माता मंदिर प्राचीन आगर की धरोहर है आगर वासियों की आस्था का केंद्र कामाख्या माता का मंदिर सबसे व्यस्ततम बाजार में स्थित है वर्तमान समय में मंदिर के आसपास दुकानों के निर्माण होने से दर्शनार्थियों की पहुंच से मंदिर दूर हो चुका है मगर यह सिद्ध स्थली अपने चमत्कारों के कारण अनोखी पहचान रखती है पंडित आत्माराम गोस्वामी अपनी सेवाएं दे रहे हैं स्थानीय नगर वासी इस मंदिर के निर्माण एवं अन्य कई मांगों को लेकर निरंतर आवाज उठाते रहे हैं। 

पांडव कालीन है चामुंडा माता मंदिर

आगर नगर के पाल रोड पर स्थित चामुंडा माता का अति प्राचीन पांडव कालीन मंदिर है नगर से कुछ दूरी पर स्थित चामुंडा माता के सिद्ध स्थल को पाल वाली माता के नाम से भी जाना जाता है पंडित मांगीलाल शर्मा बताते हैं कि आज के इस दौर में यह मंदिर नगर से कुछ दूरी पर खेतों में स्थित है मगर किसी समय यहां पर बस्ती हुआ करती थी बताया जाता है कि जहां साक्षात देवी, भैरव एवं हनुमान जी की प्रतिमा स्थित होती है वहां किसी समय में अवश्य लोगों की बसावट रही होगी दैनिक दर्शनार्थियों ने बताया कि यह मंदिर अति प्राचीन है सच्चे मन से माता रानी से जो मांगा जाता है वह मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होती है माता जी की प्रतिमा स्वयंभू है जो कि जमीन की सतह से कुछ नीचे है माता जी की प्रतिमा अपने अद्भुत रूप में विराजमान है नवरात्रि के दौरान बड़ी संख्या में भक्त यहां पहुंचते हैं ।

आऊ नदी का उद्गगम स्थल है आऊ माता मंदिर

उज्जैन रोड पर मुख्य मार्ग से लगभग आधा किलोमीटर अंदर की ओर स्थित अति प्राचीन आऊ माता मंदिर पर आम दिनों में भी दर्शनार्थियों का तांता लगा रहता है आवर ग्राम के दर्शनार्थी एवं पंडित कैलाश क्षोत्रिय बताते हैं इस मंदिर का इतिहास बहुत पुराना इस के संदर्भ में कई पौराणिक कथाएं हैं घने वट वृक्षों के बीच स्थित अति प्राचीन देवी स्थल पर समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती है गौरतलब है कि राजस्थान में प्रवाहित आहू नदी का उद्गम स्थल भी माना जाता है ।

अद्वितीय है माँ कालका की महिमा

आगर नगर के राम माली पुरा में कालका माता मंदिर स्थित है यहां सेवा देने वाले सागर जी बताते हैं कि माता की प्रतिमा चमत्कारी है नवरात्रि में यहां आम दिनों की अपेक्षा भक्तों की संख्या में इजाफा देखा जाता है  यह मंदिर भक्तों की आस्था का केंद्र है यहां भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती है माता रानी की अद्भुत प्रतिमा देखते ही बनती है माता रानी के दर्शन से मन मस्तिष्क में ऊर्जा का संचार होता है ।

आस्था का केन्द्र है बाडी माता नरवल 

आगर के नजदीक स्थित ग्राम नरवल में अति प्राचीन बाड़ी माता मंदिर स्थित है गौरतलब है कि गांव का नाम माता मंदिर के कारण ही निर्मल पड़ा बताते हैं कि बाड़ी माता मंदिर पर प्राचीन काल में नर की बलि दी जाती थी इसी कारण इस गांव का नाम नरवल पड़ा अंग्रेजी शासन में नर की बलि को गैरकानूनी माना जाता था जिसके बाद यहां पर अंदर की बलि प्रतिबंधित कर दी गई चमत्कारी देवी स्थल की सेवा वर्तमान में पंडित राजेंद्र शर्मा कर रहे हैं बड़ी संख्या में यहां भक्तजनों की आवाजाही लगी रहती है ना केवल ग्रामवासी बल्कि समूचे क्षेत्र के लिए मंदिर आस्था का केंद्र है।              

सिरपोई में कुंए से प्रकट हुई थी माँ कालिका

ग्राम सिरपोई में माँ कालका का चमत्कारिक मंदिर है। यहां शीतला सप्तमी के दिन वर्षो से माँ कालिका के सामने चूल का आयोजन किया जा रहा है। हजारों भक्त धधकते हुए अंगारों पर नंगे पैर चलते है। मंदिर की पूजा जितेन्द्रसिंहजी सोलंकी द्वारा की जाती है। इनके परदादाजी (उस वक्त शामगढ निवासी) को माताजी ने स्वप्र में आकर आदेश दिया था कि यहां से १०० किमी दूर ग्राम सिरपोई के कुएं से मुझे निकालो। माताजी और परिसर में विराजित बालाजी का श्रृंगार करने वाले पं. दुर्गाशंकर व्यास ने शब्द संचार को बताया कि श्री सोलंकी के परदादा को जब बार-बार स्वप्र  में आकर कुएं से बाहर निकालने की बात कही गइ तो वे गांव खोजते हुए सिरपोई पहुंचे। उन्होनें गांवों से बात कर उनकी सहमति से कुएं में खोजबीन शुरू की। कुएं से माँ कालिका, भगवान शिव, गणेशजी, नागदेवता सहित करीबन १० प्रतिमाएं निकली। आगर से १३ किमी दूर स्थित ग्राम सिरपोई में माँ कालिका का मंदिर जन आस्था का केन्द्र है। 

गोस्वामी समाज की कुलदेवी है हिंगलाज माता

बाबा बैजनाथ धाम मेें विराजित है हिंगलाज माता। शेर पर सवार माँ की प्रतिमा अद्भुत है। बाबा बैजनाथ महादेव मंदिर के समय से ही हिंगलाज माता भी यहां विराजित है। दोनों नवरात्रि के दौरान विशेष पूजन-अर्चन किया जाता है। पु. मुकेश पुरी ने बताया कि माँ गोस्वामी व भावसार समाज की कुलदेवी है और दूर-दराज से यहां भक्तगण माँ के दर्शन करने आते रहते है। बाबा बैजनाथ के नित्य दर्शनार्थी भी माँ के दरबार में प्रतिदिन आते है। 

चमत्कारिक है बिजासन माता मंदिर

कानड नगर में विराजित माता बिजासन का मंदिर अति प्राचीन है। छठी पीढी से मंदिर में पूजा करने वाले निलेश कुमार खजुरिया बताते है कि माता का मंदिर काफी चमत्कारिक है। दूर-दराज से श्रद्धालु का आवागमन वर्षभर जारी रहता है। माँ बिजासन के साथ माँ चामुंडा गर्भगृह में विराजमान है। उनके दादा-परदादा बताया करते थे कि भैंसवा माता मंदिर सारंगपुर से ही माताजी को यहां लाया गया था। गौरतलब रहे कि बिजासन माता मंदिर भैंसवा क्षेत्र पर खासा प्रसिद्ध मंदिर है। वहां से माता को यहां क्यों और कैसे लाया गया। इस बात की जानकारी किसी को नहीं है।

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