पढ़िए मोक्षदा एकादशी की व्रत कथा

एक बार महाराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से कहा कि हे भगवान आप तीनों लोकों के स्वामी है। और आप सबको सुख देने वाले और जगत क पति हैं। मैं आपको नमस्कार करता हूं। हे देव आप सबके हितैषी हैं। अत: मेरे संशय को दूर करके मुझे बताइए कि मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी का क्या नाम है। इस दिन कौन से देवता का पूजन किया जाता है। और उसकी क्या विधि है। कृप्या मुझे बताएं। इस पर भक्तवत्सल भगवान श्रीकृष्ण बोले कि हे धर्मराज! तुमने बड़ा ही उत्तम प्रश्न किया है। इसके सुनने से तुम्हारा यश संसार में फैलेगा। मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी अनेकों पापों को नष्ट करने वाली है। इसका नाम मोक्षदा एकादशी है। इस दिन दामोदर भगवान की धूप, दीप, नेवैद्व आदि से भक्तिपूर्वक पूजा करनी चाहिए। और इस विषय में मैं पुराणों की एक कथा तुमसे कहता हूं। भगवान श्रीकृष्ण बोले कि किसी नगर में वैखानस नाम का राजा राज्य करता था। उसके नगर में चारों वेदों के ज्ञाता ब्राह्मण रहते थे। और वह राजा अपनी प्रजा का पुत्रवत पालन करता था। एक बार रात्रि में राजा ने सपने में देखा कि उसके पिता नर्क में पड़ हैं। उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। सुबह होते ही राजा विद्वानों के पास गया और उसने अपना स्वप्न विद्वानों को सुनाया। उसने कहा कि मैंने अपने पिता को नर्क में कष्ट उठाते हुए देखा है। और उन्होंने मुझसे कहा है कि हे पुत्र मैं नर्क में पड़ा हूं। यहां से तुम मुझे मुक्त कराओ। जब मैंने ये वचन सुने तबसे मैं बहुत बेचैन हूं। राजा ने कहा कि हे ब्राह्मण देवताओं इस दुख के कारण मेरा सारा शरीर जल रहा है। अब आप कृपा करके कोई तप, दान, व्रत आदि ऐसा उपाय बताइए जिससे मेरे पिता को मुक्ति मिल जाए। उस पुत्र का जीवन व्यर्थ है जो अपने माता-पिता का उद्धार ना कर सके। एक उत्तम पुत्र जो अपने माता-पिता और अपने पूर्वजों का उद्धार करता है वह हजार मुर्ख पुत्रों से अच्छा है। जैसे एक चंद्रमा सारे जगत में प्रकाश कर देता है परन्तु लाखों तारे प्रकाश नहीं कर सकते । ब्राह्मणों ने कहा कि हे राजन यहां पास ही भूत, भविष्य और वर्तमान के ज्ञाता पर्वत ऋषि का आश्रम है। आपकी समस्या का हल वे जरुर करेंगे। यह सुनकर राजा मुनि के आश्रम में गया। और उस आश्रम में अनेक शांतचित योगी और मुनि तपस्या कर रहे थे। उसी जगह पर्वत मुनि बैठे थे। राजा ने मुनि को साष्टांग दंडवत प्रणाम किया। मुनि ने राजा से कुशलता के समाचार पूछे। राजा ने कहा कि महाराज आपकी कृपा से मेरे राज्य में सब कुशल हैं। लेकिन अकस्मात मेरे चित में अत्यंत अशांति होने लगी है। ऐसा सुनकर पर्वत मुनि ने आंखें बंद की। और इसके बारे में विचारने लगे। कुछ देर बाद मुनि बोले कि हे राजन मैंने योग के बल से तुम्हारे पिता के कुकर्मों को जान लिया है। उन्होंने पूर्व जन्म में कामातुर होकर एक पत्नी को यदपि किन्तु शौतन के कहने पर दूसरी पत्नी को ऋतुदान मांगने पर भी नहीं दिया। उसी पाप कर्म के कारण तुम्हारे पिता को नर्क में जाना पड़ा। तब राजा ने मुनि से कहा कि हे मुनिराज आप इसका कोई उपाय बताइए। पर्वत मुनि बोले कि राजन आप मार्गशीर्ष मास में शुक्ल एकादशी के दिन उपवास करें। और उस उपवास के पुण्य को अपने पिता को संकल्प करके दे दें। इसके प्रभाव से आपके पिता की अवश्य ही नर्क से मुक्ति होगी। मुनि के वचन सुनकर राजा महल में आए और मुनि के कहने के अनुसार कुटुंब समेत मोक्षदा एकादशी का व्रत किया। और इस उपवास का पुण्य उन्होंने अपने पिता को अर्पण किया। इसके प्रभाव से उसके पिता को नर्क से मुक्ति मिल गई। और स्वर्ग में जाते हुए वे पुत्र से कहने लगे कि हे पुत्र तुम्हारा कल्याण हो। ये कहकर वे स्वर्ग चले गए। मार्गशीर्ष माह की शुक्ल पक्ष कर एकादशी का जो लोग व्रत करते हैं उनके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। इस व्रत से बढ़कर मोक्ष देने वाला और कोई व्रत नहीं है।

Popular posts from this blog

तवा भी बिगाड़ सकता है घर का वास्तु, जानिए रसोई में तवे का महत्व

त्रेतायुग के राम-रावण युद्ध का स्मरण कराएगा कालवा बालाजी  मंदिर

सिद्धार्थ कॉन्वेंट हाई स्कूल में मकर सक्रांति पर्व मनाया