श्रावण विशेष:स्वयंभू हे अवंतिकानाथ राजाधिराज बाबा महाकाल
मान्यताओं के अनुसार, उज्जैन में महाकाल के प्रकट होने से जुड़ी एक कथा है। दरअसल दूषण नामक असुर से प्रांत के लोगों की रक्षा के लिए महाकाल यहां प्रकट हुए थे। फिर जब दूषण का वध करने के बाद भक्तों ने शिवजी से उज्जैन में ही वास करने की प्रार्थना की तो भगवान शिव महाकाल ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए। ऐसे उज्जैन का शास्त्रों में वर्णन भगवान श्रीकृष्ण को लेकर भी मिलता है, क्योंकि उनकी शिक्षा यहीं हुई थी
उज्जैन को प्राचीनकाल से ही एक धार्मिक नगरी की उपाधि प्राप्त है। आज भी यहां भारी संख्या में दर्शन के लिए भक्त आते हैं। दरअसल भगवान महाकाल की भस्म आरती के दुर्लभ पलों का साक्षी बनने का ऐसा सुनहरा अवसर और कहीं नहीं प्राप्त होता है। ऐसा माना जाता है कि जो इस आरती में शामिल हो जाए उसके सभी कष्ट दूर होते हैं, इसके बिना आपके दर्शन पूरे भी नहीं माने जाते हैं। इसके अलावा यहां नाग चंद्रेश्वर मंदिर और महाकाल की शाही सवारी आदि भी पर्यटकों में जिज्ञासा का विषय बने रहे हैं
हर सुबह महाकाल की भस्म आरती करके उनका श्रृंगार होता है और उन्हें ऐसे जगाया जाता है। इसके लिए वर्षों पहले शमशान से भस्म लाने की परंपरा थी, हालांकि पिछले कुछ वर्षों से अब कपिला गाय के गोबर से बने कंडे, शमी, पीपल, पलाश, बड़, अमलतास और बेर की लकड़ियों को जलाकर तैयार किए गए भस्म को कपड़े से छानने के बाद इस्तेमाल करना शुरू हो चुका है। केवल उज्जैन में आपको यह आरती देखने का सुनहरा अवसर प्राप्त होता है। दरअसल भस्म को सृष्टि का सार माना जाता है, इसलिए प्रभु हमेशा इसे धारण किए रहते हैं।
यहां के नियमानुसार, महिलाओं को आरती के समय घूंघट करना पड़ता है। दरअसल महिलाएं इस आरती को नहीं देख सकती हैं। इसके साथ ही आरती के समय पुजारी भी मात्र एक धोती में आरती करते हैं। अन्य किसी भी प्रकार के वस्त्र को धारण करने की मनाही रहती है। महाकाल की भस्म आरती के पीछे एक यह मान्यता भी है कि भगवान शिवजी श्मशान के साधक हैं, इस कारण से भस्म को उनका श्रृंगार-आभूषण माना जाता है। इसके साथ ही ऐसी मान्यता है कि ज्योतिर्लिंग पर चढ़े भस्म को प्रसाद रूप में ग्रहण करने से रोग दोष से भी मुक्ति मिलती है।