श्रावण, सोमवती अमावस्या कल:अन्य कई योग भी बन रहे है वर्षो बाद

शिव भक्तों के लिए सावन का महीना अपने आराध्य देव की उपासना का महीना होता है। सावन के महीने में पड़ने वाले सोमवार का विशेष महत्व होता है। सोमवार का दिन भगवान शिव समर्पित होता है ऐसे में अगर सावन के महीने में सोमवार के दिन शिव पूजा करने पर हर तरह की मनोकामना अवश्य पूरी होती है। कुंवारी कन्याएं अच्छे वर की लालसा में सावन के सोमवार के दिन व्रत रखती हैं। वहीं विवाह में आ रही अड़चनों को दूर करने लिए भी सावन का महीने का महत्व होता है।


 


मान्यता है कि जब देवताओं और असुरों के बीच समुद्र मंथन हुआ था तब उस दौरान समुद्र से निकले विष का पान भगवान शिव ने किया था। ताकि इस विष का असर संपूर्ण सृष्टि पर न पड़ें। विष के पीने से भगवान शिव के शरीर का ताप का काफी बढ़ गया था और उनको काफी परेशानी होने लगी थी। तब देवताओं ने भगवान शिव को इस परेशानी से छुटकारा दिलाने उन पर पानी की जमकर बौछारें डाली थी। यह महीना उस समय सावन का था। तभी से हर वर्ष सावन के महीने में भगवान शिव को जलाभिषेक करने की परंपरा है।


 


साल 2020 में करीब 16 वर्षों के बाद 'सोमवती अमावस्या' का संयोग बन रहा है। सोमवती अमावस्या पर भोलेनाथ के भक्त विशेष आराधना करते हैं। चूंकि 20 जुलाई 2020 को सोमवार और अमावस्या तिथि एक साथ पड़ रही हैं, इसलिए इस बार खेत-खलिहानों में पूजा से लेकर शहर के भव्य मंदिरों में शिवभक्ति का नजारा दिखाई देगा। पुराणों में कहा गया है कि सोमवार को अमावस्या बड़े भाग्य से ही पड़ती है। इस दिन को नदियों, तीर्थों में स्नान, गोदान, अन्नदान, ब्राह्मण भोजन, वस्त्र आदि दान के लिए विशेष माना जाता है। सोमवार चंद्रमा का दिन है। इस दिन अमावस्या को सूर्य तथा चंद्र एक सीध में स्थित रहते हैं, इसलिए यह पर्व विशेष पुण्य देने वाला होता है। अमावस्या जब सोमवार के दिन पड़ती है तो उसे सोमवती अमावस्या कहते हैं ।


हिंदू संस्कृति और हिंदू धर्म में, अमावस्या को बहुत महत्त्व दिया जाता है। भारत भर में हिंदू भक्तों द्वारा इस दिन कई महत्वपूर्ण अनुष्ठानों और परंपराओं को देखा जाता है। यह महीने का सबसे अंधेरा दिन है और पुरानी मान्यताओं के अनुसार, इसे वर्ष के सबसे शक्तिशाली और प्रभावशाली समय में से एक माना जाता है।


पुरुषोत्तम मास वाले सावन में बना था संयोग


 


ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री जी ने बताया की 16 वर्षों बाद सावन महीने में सोमवती अमावस्या का संयोग बन रहा है। 20 साल पहले सन्‌ 2000 में सोमवती अमावस्या थी। इसके बाद 2004 में सावन महीने को पुरुषोत्तम मास (अधिक मास) के रूप में मनाया गया था, यानी उस साल दो बार सावन महीना पड़ा था। दूसरे सावन महीने में सोमवती अमावस्या का संयोग बना था।शिव को अति प्रिय श्रावण मास में 300 वर्षों बाद दुर्लभ संयोग में आ रहा है। इस वर्ष सोमवार के दिन उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में शुरू हो रहे श्रावण का समापन तीन अगस्त 2020 को रक्षाबंधन पर सोमवार के दिन उत्तराषाढ़ा नक्षत्र की साक्षी में ही होगा। एक माह में पांच सोमवार, दो शनि प्रदोष और हरियाली सोमवती अमावस्या का आना अपने आप में अद्वितीय है। ज्योतिषियों के अनुसार श्रावण मास में ग्रह, नक्षत्र व तिथियों का ऐसा विशिष्ट संयोग बीती तीन सदी में नहीं बना है।इस वर्ष श्रावण मास का आरंभ और समापन सोमवार के दिन उत्ताराषाढ़ा नक्षत्र की साक्षी में होगा। यह नक्षत्र कार्यो की सिद्घि के लिए श्रेष्ठ माना जाता है। 13 जुलाई 2020 को दूसरे सोमवार पर रेवती नक्षत्र, सुकर्मा योग, कोलव करण का संयुक्त क्रम रहेगा। यह स्थिति भक्तों को मानोवांछित फल की प्राप्ति के लिए धार्मिक कार्यो का पांच गुना शुभफल प्रदान करेगी।


20 जुलाई 2020 को मनेगी सोमवती अमावस्या--


इस 20 जुलाई 2020 को हरियाली अमावस्या का पर्व मनाया जाएगा। इस वर्ष सोमवती अमावस्या पर पुनर्वसु नक्षत्र के बाद रात्रि में 9.22 बजे से पुष्य नक्षत्र रहेगा। सोमवार को यदि पुष्य नक्षत्र रहे तो उसे सोम पुष्य कहते हैं। रात्रि में सर्वार्थ सिद्धि योग भी है।सोमवार के दिन पुष्य नक्षत्र का आना सोम पुष्य कहलाता है। अमावस्या की रात सोमपुष्य के साथ सर्वार्थसिद्घि योग मध्य रात्रि साधना के लिए विशेष है। 27 जुलाई को चौथे सोमवार पर सप्तमी उपरांत अष्टमी तिथि रहेगी। साथ ही चित्रा नक्षत्र व साध्य योग होने से यह सोवार संकल्प सिद्घि व संकटों की निवृत्ति के लिए खास बताया गया है। 


जानिए पितृ पूजा का महत्व--


सावन महीने में पड़ रही सोमवती अमावस्या पर भगवान भोलेनाथ के साथ ही पितृ पूजा करने से पितृ दोष दूर होने की मान्यता है। जाने-अनजाने में जो गलती हो, उसके लिए पितरों से क्षमा मांगनी चाहिए। साथ ही सूर्यदेव को जल अर्पण करके तुलसी पौधे की 108 परिक्रमा करनी चाहिए।


पण्डित दयानन्द शास्त्री बताते हैं की ज्योतिष शास्त्र व धार्मिक दृष्टि से अमावस्या की तिथि बहुत महत्वपूर्ण होती है। पितृ दोष से मुक्ति पाने के लिये इस तिथि का विशेष महत्व होता है क्योंकि इस तिथि को तर्पण, स्नान, दान आदि के लिये बहुत ही पुण्य फलदायी माना जाता है। कोई जातक यदि काल सर्पदोष से पीड़ित है तो उससे मुक्ति के उपाय के लिये भी अमावस्या तिथि काफी कारगर मानी जाती है।


वर्ष में एक बार आती है सोमवती अमावस्या-


हिंदू पंचाग के अनुसार हर महीने एक अमावस्या आती है परंतु सोमवार के दिन अमावस्या तिथि का संयोग सालों में कभी कभार बनता है। यह संयोग स्नान, दान के लिए शुभ और सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। इस दिन नदियों, तीर्थों में स्नान, गोदान, अन्नदान, ब्राह्मण भोजन, वस्त्र दान करना पुण्य फलदायी माना जाता है।


श्रावण 2020 की विशेष जानकारी-


इस वर्ष 2020 में 3 अगस्त को रक्षाबंधन के पर्व पर दिन भर श्रवण नक्षत्र रहेगा। श्रावणी पूर्णिमा रक्षा बंधन पर सुबह उत्ताराषाढ़ा के बाद श्रवण नक्षत्र रहेगा। तीन अगस्त 2020 को रक्षाबंधन पर श्रवण नक्षत्र का होना महा शुभफलदायी माना जाता है। इस नक्षत्र में भाई की कलाई पर राखी बांधने से भाई, बहन दोनों के लिए यह दीर्घायु व सुख समृद्घि कारक माना गया है। 


इस सावन में खास बात यह भी है कि सावन की शुरुआत सोमवार से हो रही है और सावन का समापन भी सोमवार के दिन ही होगा। श्रावण मास में दो सोमवार को विशेष रूप से अमावस्या और पूर्णिमा पर पड़ रहे हैं। श्रावण मास के सोमवती अमावस्या और सोमवती पूर्णिमा का संयोग 47 साल पहले बना था। श्रावण मास में पांच सोमवार 6 जुलाई प्रतिपदा, 13 जुलाई अष्टमी, 20 जुलाई अमावस्या, 27 जुलाई सप्तमी, 3 अगस्त पूर्णिमा पर विशेष योग बन रहे हैं। सोमवती अमावस्या और सोमवती पूर्णिमा का अद्भुत संयोग 1973 में बना था।श्रावण मास का आरंभ सोमवार व समाप्ति सोमवार को होने का योग पूर्व में 1976, 1990, 1997 व 2017 में बना था। भविष्य में 2024 में यह अद्भुत संयोग बनेगा। उस समय 22 जुलाई 2024 ,सोमवार से श्रावण मास प्रारंभ होकर 19 अगस्त 2024, सोमवार को समाप्त होगा।


इस बार श्रावण मास का आरंभ और समापन सोमवार के दिन उत्ताराषाढ़ा नक्षत्र की साक्षी में होगा। यह नक्षत्र कार्यो की सिद्घि के लिए श्रेष्ठ माना जाता है। 13 जुलाई को दूसरे सोमवार पर रेवती नक्षत्र, सुकर्मा योग, कोलव करण का संयुक्त क्रम रहेगा। यह स्थिति भक्तों को मानोवांछित फल की प्राप्ति के लिए धार्मिक कार्यो का पांच गुना शुभफल प्रदान करेगी। 20 जुलाई को हरियाली सोमवती अमावस्या पर पुनर्वसु नक्षत्र के बाद रात्रि में 9.22 बजे से पुष्य नक्षत्र रहेगा।


 


सोमवती अमावस्या से सम्बंधित अनेक कथाएँ 



परंपरा है कि सोमवती अमावस्या के दिन इन कथाओं को विधिपूर्वक सुना जाता है। एक गरीब ब्राह्मण परिवार था, जिसमें पति, पत्नी के अलावा एक पुत्री भी थी। पुत्री धीरे धीरे बड़ी होने लगी, उस लड़की में समय के साथ सभी स्त्रियोचित गुणों का विकास हो रहा था। लड़की सुन्दर, संस्कारवान एवं गुणवान भी थी, लेकिन गरीब होने के कारण उसका विवाह नहीं हो पा रहा था। एक दिन ब्राह्मण के घर एक साधू पधारे, जो कि कन्या के सेवाभाव से काफी प्रसन्न हुए। कन्या को लम्बी आयु का आशीर्वाद देते हुए साधू ने कहा की कन्या के हथेली में विवाह योग्य रेखा नहीं है। ब्राह्मण दम्पति ने साधू से उपाय पूछा कि कन्या ऐसा क्या करे की उसके हाथ में विवाह योग बन जाए। साधू ने कुछ देर विचार करने के बाद अपनी अंतर्दृष्टि से ध्यान करके बताया कि कुछ दूरी पर एक गाँव में सोना नाम की धूबी जाती की एक महिला अपने बेटे और बहू के साथ रहती है, जो की बहुत ही आचार-विचार और संस्कार संपन्न तथा पति परायण है। यदि यह कन्या उसकी सेवा करे और वह महिला इसकी शादी में अपने मांग का सिन्दूर लगा दे, उसके बाद इस कन्या का विवाह हो तो इस कन्या का वैधव्य योग मिट सकता है। साधू ने यह भी बताया कि वह महिला कहीं आती जाती नहीं है। यह बात सुनकर ब्राह्मणि ने अपनी बेटी से धोबिन कि सेवा करने की बात कही।


 



कन्या तड़के ही उठ कर सोना धोबिन के घर जाकर, सफाई और अन्य सारे करके अपने घर वापस आ जाती। सोना धोबिन अपनी बहू से पूछती कि तुम तो तड़के ही उठकर सारे काम कर लेती हो और पता भी नहीं चलता। बहू ने कहा कि माँजी मैंने तो सोचा कि आप ही सुबह उठकर सारे काम ख़ुद ही ख़त्म कर लेती हैं। मैं तो देर से उठती हूँ। इस पर दोनों सास बहू निगरानी करने लगीं कि कौन है जो तड़के ही घर का सारा काम करके चला जाता हा। कई दिनों के बाद धोबिन ने देखा कि एक कन्या मुँह अंधेरे घर में आती है और सारे काम करने के बाद चली जाती है। जब वह जाने लगी तो सोना धोबिन उसके पैरों पर गिर पड़ी, पूछने लगी कि आप कौन हैं और इस तरह छुपकर मेरे घर की चाकरी क्यों करती हैं। तब कन्या ने साधू द्बारा कही गई साड़ी बात बताई। सोना धोबिन पति परायण थी, उसमें तेज था। वह तैयार हो गई। सोना धोबिन के पति थोड़ा अस्वस्थ थे। उसने अपनी बहू से अपने लौट आने तक घर पर ही रहने को कहा। सोना धोबिन ने जैसे ही अपने मांग का सिन्दूर कन्या की मांग में लगाया, उसके पति मर गया। उसे इस बात का पता चल गया। वह घर से निराजल ही चली थी, यह सोचकर की रास्ते में कहीं पीपल का पेड़ मिलेगा तो उसे भँवरी देकर और उसकी परिक्रमा करके ही जल ग्रहण करेगी, उस दिन सोमवती अमावस्या थी। ब्राह्मण के घर मिले पूए-पकवान की जगह उसने ईंट के टुकड़ों से 108 बार भँवरी देकर 108 बार पीपल के पेड़ की परिक्रमा की और उसके बाद जल ग्रहण किया। ऐसा करते ही उसके पति के मुर्दा शरीर में कम्पन होने लगा।


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