गजल
मिली जब से ख़बर तेरी गली की
ज़रूरत रास आई ज़िंदगी की
नहीं होती हैं पूरी मरते दम तक
हज़ारों ख़्वाहिशें हैं आदमी की
किसी का ग़म सुनेगा किसको फ़ुर्सत
पड़ी है सबको अपने अपने जी की
कहे तो जा रहे अशआर कितने
कमी है उनमें लेकिन ताज़गी की
बग़ावत कर ली आख़िर तीरगी से
जला कर एक शम्मां रोशनी की
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