कल मनेगी मोनी अमावस्या:पवित्र नदियों में स्नान रहता है बेहद शुभ
हिन्दू धर्म शास्त्रों में मौनी अमावस्या का दिन पवित्र नदियों में स्नान करने के लिए बेहद ही शुभ माना जाता है। माघ मेले में भी स्नान के लिए सबसे महत्वपूर्ण होती है मौनी अमावस्या। जिसे माघी अमावस्य के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन लोग मौन व्रत धारण करते हैं। माघ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मौनी अमावस्या या माघी अमावस्या कहा जाता है। माघ की अमावस्या के कारण इसे माघी अमावस्या कहा जाता है। इस वर्ष मौनी अमावस्या 24 जनवरी 2020 , दिन शुक्रवार को है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मौनी अमावस्या के दिन पितरों का तर्पण करने से पितरों को शांति मिलती है। मौनी अमावस्या पर किया गया दान-पुण्य का फल सतयुग के ताप के बराबर मिलता है। कहा जाता है कि इस दिन गंगा का जल अमृत की तरह हो जाता है।
इस दिन भगवान विष्णु और शिव दोनों की पूजा का विधान है। इस दिन प्रात: स्नान करने के बाद भगवान विष्णु और भगवान शिव की पूजा करनी चाहिये। श्री हरि को पाने का सुगम मार्ग है माघ मास में सूर्योदय से पूर्व किया गया स्नान। इसमें भी मौनी अमावस्या को किया गया गंगा स्नान अद्भुत पुण्य प्रदान करता है।इस दिन मनुष्य को मौन रहना चाहिए और गंगा, यमुना, नर्मदा, कावेरी, चम्बल एवम शिप्रा जैसी अन्य पवित्र नदियों, जलाशय अथवा पवित्र कुंड में स्नान करना चाहिए।इसके अलावा इस दिन ब्रह्मदेव और गायत्री का भी पूजन करना फलदायी होता है तथा 108 बार तुलसी परिक्रमा करने से भी शुभ फलों की प्राप्ति होती है। स्कंद पुराण में बताया गया है कि मुनि शब्द से मौनी शब्द की उत्पत्ति हुई है। मौनी अमावस्या के दिन व्रत के साथ मौन रखा जाता है, जिससे व्यक्ति का आत्मबल मजबूत होता है। यह भी कहा जाता है कि इस दिन ही प्रथम पुरुष मनु का जन्म हुआ था।
जानिए मौनी अमावस्या के दिन किस चीज का दान करें-
मौनी अमावस्या के दिन तेल, तिल, सूखी लकड़ी, कंबल, गरम वस्त्र, काले कपड़े, जूते दान करने का विशेष महत्व है। वहीं जिन जातकों की कुंडली में चंद्रमा नीच का है, उन्हें दूध, चावल, खीर, मिश्री, बताशा दान करने में विशेष फल की प्राप्ति होगी। मौनी यानी माघी अमावस्या के दिन दान करना पुण्य का काम माना गया है।
यह रहेगा मौनी अमावस्या का शुभ मुहूर्त --
24 जनवरी 2020 को मौनी अमावस्या की शुरुआत होगी। इस दिन अमावस्या तिथि की शुरुआत सुबह 02 बजकर 17 मिनट से हो जायेगी जिसकी समाप्ति 25 जनवरी 2020 को सुबह 03 बजकर 11 मिनट पर होगी। इसी दिन शनि अपनी राशि लगभग 29 वर्षों बाद मकर में प्रवेश करेंगें यानी 24 जनवरी की दोपहर 12 बजकर10 पर ।शनि के राशि बदलने पर मकर, धनु और कुंभ राशि पर शनि की साढ़ेसाती शुरू हो जाएगी जबकि वृश्चिक राशि पर से साढ़ेसाती उतर जाएगी।
यह करें कमजोर या पीड़ित चन्द्रमा वाले जातक--
जिन लोगों की कुंडली में चंद्रमा कमज़ोर हो उन्हें गाय को दही और चावल खिलाना चाहिए इससे उनको मानसिक शांति प्राप्त होगी। जिन जातकों की कुंडली में चंद्रमा नीच का हो, उन्हें दूध, चावल, खीर, मिश्री, बताशा दान करना चाहिए।वैदिक ज्योतिष में चंद्रमा को मन का कारक कहा गया है और अमावस्या के दिन चंद्र दर्शन नहीं होते हैं।
समझें मौनी अमावस्या पर मौन व्रत के महत्व को --
धर्म ग्रंथों में ऐसा उल्लेख मिलता है कि इसी दिन से द्वापर युग का प्रारंभ हुआ था। माना जाता है कि इस दिन गंगा का जल अमृत बन जाता है। जिससे इस दिन गंगा में स्नान करने से पुण्य और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन कई लोग मौन व्रत धारण कर मुनियों जैसा आचरण करते हैं। इससे एक विशेष तरह की ऊर्जा प्राप्त होती है। साथ ही मानसिक और शारीरिक कष्ट दूर होते हैं।
पौराणिक कथाओं अनुसार इस दिन ऋषि मनु का जन्म हुआ था। जिसके कारण इसे मौनी अमावस्या के नाम से जाना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मौनी अमावस्या के दिन पितरों का तर्पण करने से पितरों को शांति मिलती है। मौनी अमावस्या पर किया गया दान-पुण्य का फल सतयुग के ताप के बराबर मिलता है। कहा जाता है कि इस दिन गंगा का जल अमृत की तरह हो जाता है। इस दिन प्रात: स्नान करने के बाद भगवान विष्णु और भगवान शिव की पूजा करनी चाहिये। श्री हरि को पाने का सुगम मार्ग है माघ मास में सूर्योदय से पूर्व किया गया स्नान। इसमें भी मौनी अमावस्या को किया गया गंगा स्नान अद्भुत पुण्य प्रदान करता है।
माघ अमावस्या पर मौन रहने का विशेष महत्व बताया गया है। अगर इस दिन मौन रहना संभव न हो तो अपने मुख से कटु वचन न बोलें। वैदिक ज्योतिष में चंद्रमा को मन का कारक कहा गया है और अमावस्या के दिन चंद्र दर्शन नहीं होते हैं। इससे मन की स्थिति कमजोर रहती है। शास्त्रों के अनुसार, माघ मास में पूजन-अर्चन व नदी स्नान करने से भगवान नारायण को प्राप्त किया जा सकता है। मान्यता है कि इन दिनों नदी में स्नान करने से स्वर्ग प्राप्ति का मार्ग मिल जाता है। मौनी अमावस्या के दिन सूर्य को अर्घ्य देने से गरीबी और दरिद्रता दूर हो जाती है। इसलिए इस दिन मौन व्रत रखकर मन को संयम में रखने का विधान है। इस दिन व्रती को मौन धारण करते हुए दिन भर मुनियों सा आचरण करना पड़ता है, इसी कारण यह अमावस्या मौनी अमावस्या कहलाती है। साधु-संत, ऋषि सभी प्राचीन समय से मन पर नियंत्रण रखने के बारे में बताते रहे हैं। क्योंकि मन बहुत तेज गति से दौड़ता है। जिस पर कंट्रोल करना थोड़ा मुश्किल होता है। मौनी अमावस्या का यही उद्देश्य है कि इस दिन मौन व्रत रखा जाए जिससे मन को संयमित किया जाए। मन ही मन ईश्वर का स्मरण करें। यह एक प्रकार से मन को साधने की एक यौगिक क्रिया भी है। मान्यता यह भी है कि अगर किसी के लिए मौन रहना संभव न हो तो इस दिन अपने विचारों से पवित्र रहें और किसी को कोई कटुवचन न कहे। इस व्रत में भगवान विष्णु और शिव जी की पूजा करें।
यह हैं मौनी अमावस्या की कहानी--
पौराणिक कथा के अनुसार देव स्वामी नाम का ब्राह्मण काँचीपुर नगरी में अपनी पत्नी और सात पुत्रों के साथ रहा करता था। उसने अपने सभी पुत्रों का विवाह कर दिया था। उस ब्राह्मण की एक पुत्री भी थी। जिसके लिए लह सुयोग्य वर तलाश कर रहा था।इसके लिए उसने उसकी जन्मपत्री एक ब्राह्मण को दिखाई। कुंडली देखने के बाद देवस्वामी ने बताया कि उसकी पुत्री में दोष है। जिसकी वजह से उसकी पुत्री विवाह के बाद विधवा हो जाएगी। इसके बाद देवस्वामी ने इसका उपाय पूछा तो पंडित ने बताया कि सिंहलद्वीप पर सोमा नाम कि धोबिन रहती है उसकी विधिवत पूजा करने से यह दोष दूर हो जाएगा।
जिसके बाद उसका छोटा बेटा और उसकी पुत्री सोमा धोबिन को लेने के लिए निकल पड़े। दोनो भाई बहन समुद्र के पास पहुंचकर उसे पार करने का उपाय सोचने लगे। लेकिन कई कोशिश करने के बाद भी वह समुद्र पार नहीं कर सके। जिसके बाद वह एक पेड़े के नीचे बैठ गए। उस पेड़ पर ही एक गिद्ध का घोंसला भी था। जिसमें गिद्ध का परा परिवार रहता था। जब गिद्धों के मां शाम को खाना लेकर आई और उसने वह खाना बच्चों को दिया तो उन्होंने कुछ भी नहीं खाया। जब उनकी मां ने इसका कारण पूछा तो गिद्ध के बच्चों ने कहा कि हम तब तक कुछ नहीं खाएंगे जब तक पेड़ के नीचे बैठे भखे लोग कुछ नहीं खाएंगे। तब उस गिद्धनी ने उन दोनों भाई बहनों के पास जाकर इसका कारण पूछा तो दोनों ने गिद्धनी को सारा वृतांत सुना दिया। इसके बाद उस गिद्धनी ने कहा कि मैं तुम्हें यह समुद्र पार करा दूंगी तुम दोनो भोजन कर लो। इसके बाद दोनों ने भोजन कर लिया और सुबह होने पर गिद्धनी ने दोनो को सोमा के घर पहुंचा दिया।
नोट: रामघाट पर शिप्रा स्नान का फाइल फोटो