16 दिसंबर से शरू होगा मलमास,14 जनवरी तक नही गूंजेगी शहनाई

उज्जैन-हिन्दू परम्परा में मुहूर्त का विशेष महत्व होता है। हमारे सनातन धर्म में प्रत्येक कार्य के लिए एक अभीष्ट मुहूर्त निर्धारित है। वहीं कुछ अवधि ऐसी भी होती है जब शुभ कार्य के मुहूर्त का निषेध होता है। इस अवधि में सभी शुभ कार्य वर्जित होते हैं। ऐसी ही एक अवधि है


जब गुरु की राशि में सूर्य आते हैं तब मलमास का योग बनता है। वर्ष में सूर्य के गुरु की राशि में प्रवेश करने से विवाह संस्कार आदि कार्य निषेध माने जाते हैं।


ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री का कहना है कि विवाह और शुभ कार्यों से जुड़ा यह नियम मुख्य रूप से उत्तर भारत में लागू होता है, जबकि दक्षिण भारत में इस नियम का प्रभाव शून्य होता है। मलमास में सूर्य धनु राशि का होता है। ऐसे में सूर्य का बल वर को बलवान प्राप्त नहीं होता। 


'मली सन् म्लोचति गच्छतीति मलिम्लुचः' अर्थात् मलिन (गंदा) होने पर यह आगे बढ़ जाता है।''


 सनातन हिन्दू धर्म ग्रंथों में इस पूरे महीने मल मास में किसी भी शुभ कार्य को करने की मनाही है। जब गुरु की राशि में सूर्य का प्रवेश होता है तब मलमास का योग बनता है। 


सूर्य के गुरु की राशि, धनुष्य कर्क में प्रवेश करने से विवाह संस्कार आदि कार्य निषेध माने जाते हैं। विवाह और शुभ कार्यों से जुड़ा यह नियम मुख्य रूप से उत्तर भारत में लागू होता है। मद्रास, चेन्नई, बेंगलुरू में इस दोष से विवाह आदि कार्य मुक्त होते हैं।
मलमास या खरमास में किसी भी तरह का कोई मांगलिक कार्य ना करें। जैसे शादी, सगाई, वधु प्रवेश, द्विरागमन, गृह प्रवेश, गृह निर्माण, नए व्यापार का आरंभ आदि ना करें। मलमास के दौरान शुभ विवाह, मांगलिक कार्य, भवन निर्माण, नया व्यापार तथा व्यवसाय, मुंडन, वधू प्रवेश, गृह प्रवेश हो या विवाह संबंधी कोई रिवाज इत्यादि सभी शुभ कार्य पूर्णत: निषेध होते हैं।
मांगलिक कार्यों के सिद्ध होने के लिए गुरु का प्रबल होना बहुत जरुरी है। बृहस्पति जीवन के वैवाहिक सुख और संतान देने वाला होता है। मलमास के दौरान, गंगा और गोदावरी के साथ-साथ उत्तर भारत के उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, राजस्थान, राज्यों में सभी मांगलिक कार्य व यज्ञ करना निषेध होता है। 


ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि मलमास में साधना, उपासना, कल्पवास, तीर्थाटन की दृष्टि से श्रेष्ठ है। इस माह में भक्तों को भगवगत भजन व कथा पारायण का श्रवण करना चाहिए। धनुर्मास में दान का विशेष महत्व बताया गया है। क्योंकि धनु राशि के स्वामी बृहस्पति हैं, इनका सूर्य से समसप्तक संबंध बताया गया है।


 सूर्य साधना के लिए यह महीना विशेष है, इसलिए सूर्य की अनुकूलता के लिए सूर्य से संबंधित वस्तुओं का दान करना चाहिए।


ऐसे बनेगा धनुर्मास में पंचग्रही योग


16 दिसंबर 2019 को सूर्य का धनु राशि में प्रवेश होगा। इस राशि में पहले से ही गुरु,शनि, केतु मौजूद हैं, ऐसे में चर्तुग्रही योग का निर्माण होगा। 24 दिसंबर को बुध भी धनु राशि में प्रवेश करेंगे, जो पंचग्रही योग बनाएंगे। 26 दिसंबर को सूर्यग्रहण होने से यह अलग-अलग क्षेत्रों में भिन्न प्रभाव डालेगा। इस पक्षकाल में अमानवीयता को लेकर धरना, उग्रप्रदर्शन, व आंदोलन होंगे। ग्रहयुति का यह प्रभाव जनवरी में आधे माह तक लागू रहेगा।
इस एक महीने में मांगलिक, विवाह और शुभ कार्य पूर्णतया वर्जित रहेंगे। वहीं ग्रहों की स्थितियों में भी बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा। मंदिरों में अनुष्ठान के साथ पौष माह लगने से पौषबड़ा महोत्सव आयोजित होंगे। 


उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. दयानन्द शास्त्री ने बताया कि सगाई, शादी, वधु प्रवेश, घर का निर्माण कार्य, नए घर में प्रवेश, बच्चे का मुंडन, किसी नए व्यापार की शुरुआत इस बीच नहीं होगी। क्योंकि किसी भी अच्छे और शुभ काम के लिए गुरू का मजबूत होना जरूरी माना है।


वैवाहिक जीवन में सुख शांति और संतान पक्ष से प्रसन्नता प्राप्ति के लिए बृहस्पति देव को कारक माना जाता है। किन्तु सूर्य जब मीन या धनु राशि में प्रवेश कर जाता है तब वृहस्पति की स्थिति कमजोर हो जाती है। यही कारण है कि एक माह तक सभी मांगलिक कार्य वर्जित हो जाते हैं। मलमास को अधिक मास भी कहा जाता है। 14 दिसंबर को गुरु पश्चिम दिशा में अस्त होंगे। 9 जनवरी को गुरु फिर पूर्व दिशा में उदय होंगे।


नही बजेगी 14 जनवरी 2020 तक शहनाई 


मलमास 14 जनवरी 2020 को रात 2 बजे तक रहेगा। नए साल में 15 जनवरी 2020 से फिर से शुभ कार्य शुरू होंगे। सूर्य के मकर राशि में जाने के बाद एक बार फिर शुभ कार्यों का सिलसिला शुरू हो जाएगा। न्याय के देवता का प्रतिनिधित्व करने वाले शनिग्रह नए साल की शुरुआत में अपनी चाल बदलेंगे।


क्या करें करें मलमास या खरमास में ?
मलमास माह के दौरान भगवान विष्णु की पूजा नियमित रूप से करना चाहिए। इस मास में पड़ने वाली एकादशी तिथि को उपवास कर भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा कर उन्हें तुलसी के पत्तों के साथ भोग लगाने से समस्त सुखों की प्राप्ति होती है।


पंडित दयानन्द शास्त्री  बताते हैं की मलमास में प्रतिदिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि से निवृत होकर भगवान विष्णु का केसर युक्त दूध से अभिषेक करें व भगवान विष्णु के मंत्र “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नम:” का तुलसी की माला से एक माला जाप करें।


प्रतिदिन सुबह जल्दी उठकर नहाने के बाद सूर्य को जल चढ़ाएं। इसके लिए तांबे के लोटे में जल भरें और इसमें चावल, लाल फूल, लाल चंदन भी डालें। पूर्व दिशा की ओर मुंह करके सूर्य देव को अर्घ्य चढ़ाएं। इस दौरान सूर्य मंत्र 'ऊँ सूर्याय नम:' का जाप करें। ऐसा करने से घर-परिवार और समाज में मान-सम्मान मिलता है और भाग्योदय में आ रही बाधाएं दूर हो सकती हैं।


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